________________
३८
प्रा० जै० इ० तीसरा भाग
कर सकते हैं । अब रही बात समय की सो तो इतिहासकारोंने । भी अबतक समय निश्चित नहीं किया है । आशा है कि ज्या ज्याँ अनुसंधान किया जायगा त्याँ त्याँ इस विषय की सत्यता भी . प्रकट होकर प्रमाणिक होती जायगी।
- जैन श्वेताम्बर समुदाय में लगभग ४५० वर्षों से एक स्थानकवासी नामक फिरका पृथक् निकला है। इस मत वालों का कहना है कि मूर्ति पूजा प्राचीन काल में नहीं थी यह अर्वाचीन समय में ही प्रचारित की गई है। इस विषय के लिये वाद विवाद ४५० वर्षों से चल रहा है । इस वाद विवाद की अोट में हमारी अनेक शक्तियाँ क्या शारीरिक और क्या मानसिक व्यर्थ नष्ट हो रही हैं।
किन्तु महाराजा खारवेल के शिलालेख से यह समस्या शीघ्र ही हल हो जाती है क्योंकि इस शिलालेख में साफ साफ लिखा हुआ है कि मगध नरेश नंदराजा कलिङ्ग देश से भगवान् ऋषभदेव की स्वर्णमय मूर्ति ले गया था जिसे खारवेल वापस ले आया। इस स्थल पर यह बात विचार करने योग्य है कि जिस मन्दिर से नंदराजा मूर्ति ले गया होगा वह मन्दिर नंदराजा से प्रथम का बना हुआ था यह स्वयं सिद्ध है । यह मन्दिर विशेष पुराना नहीं था कारण कि वह मन्दिर श्रेणिक नरेश का बनवाया हुआथा। इधर नंदराजा और श्रेणिक राजा के समय में अधिक