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प्रा० जै० इ० तीसरा भाग
.: (१५)... "सुकृति श्रमले सुविहित शत दिशाओं के ज्ञानी-तपस्वी ऋषि संघ के लोगों को...: 'अरिहन्त के निषीहीका पास पहाड़ के ऊपर उम्दा खानों के अन्दर से निकाल के लाए हुये-अनेक योजनों से लाए हुए सिंह प्रस्थवाली रानी सिन्धुला के लिये निःश्रय ....."
(१६)....."घंटा संयुक्त (...) वैडुर्य रत्नवाले चार स्तम्भ स्थापित किये । पचहत्तर लाख के व्यय से मौर्यकाल में उच्छेदित हुए हुए चौसठ ( चौसठ अध्यायवाले ) अंग सप्तिकों का चौथा भाग पुनः तैयार करवाया। यह खेमराज वृद्धराज भिक्षुराज धर्मराज कल्यान को देखते और अनुभव करते
(१७)...."छ गुण विशेष कुशल सर्व पंथो का आदर करनेवाला सर्व (प्रकार के) मन्दिरों की मरम्मत करवानेवाला अस्खलित रथ और सेना वाला चक्र ( राज्य ) के धुरा (नेता ) गुप्त ( रक्षित) चक्रवाला प्रवृतचक्रवाला राजर्षि वंश विनिःसृत राजा खारवेल .. यूरोपीय और भारतीय पुरातत्वज्ञों से केवल खारवेल का ही शिलालेख उपलब्ध नहीं हुआ है वरन् दूसरे अनेक लाभ हमें उनकी खोजों से हुए हैं । उदयगिरि और खण्डगिरि की हस्ति गुफा के अतिरिक्त अनन्त गुफा, रानीगुफा, सर्पगुफा, व्याघ्रगुफा, शतधरगुफा, शतचक्रगुफा, हाँसीगुफा ओर नव मुनि गुफा का भी साथसाथ पता लगा है। किंवदन्ति से ज्ञात होता है कि