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________________ ६६ अर्थात् - इस कल्पसूत्र में ऐसा वर्णन है कि सुस्थित सुप्रतिबुद्ध आचार्य के दूसरे शिष्य प्रियग्रंथ स्थविर ने मध्यमा शाखा स्थापित की । पांचवां लेख : सं० ४७, ग्र० २, दि० २० एतस्यां पूरवाये चारणे गणे, पेतिधम्मिक (कुल) वाचकस्य, रोहणं दिस्य सीसस्य सेनस्य निर्वतणं, सावक दर........... ........491 (f) Fal........... ✯ अर्थ ; - संवत् ४७, ग्रीष्म काल का दूसरा महीना, मिति २० को चारण गरण, पेतिधम्मिक (प्रीतिधर्मिक) कुल के आचार्य रोहनन्दि के शिष्य सेन के उपदेश से श्रावक इत्यादि । ( यह लेख सर कनिंघम के मत से ईस्वी पूर्व १० वर्ष का है) जब हम कल्पसूत्र से मिलान करते हैं तो यह गण और कुल भी इस से मेल खाता है । पाठ :- थेरेहिंतो णं सिरिगुत्ते हिंतो इत्थणं चारणे गणे णामं गणे निग्गए, तस्सणं इमात्र चचारि साहाओ, सत्त य कुलाई एव माहिज्जंति- से किं तं कुलाइ ? कुलाई एवमाहिज्जंति जहा पढमित्थ वत्यलिज्जं, बी पुरा परेइ धम्मिश्र होइ । अर्थात् : - स्थविर श्री गुप्त से चारण गण निकला तथा चारण गण से प्रीतिधर्मिक शाखा निकली। छठा लेख : सिद्ध । नमो भरहते महावीरस्य देवस्य राज्ञा वासुदेवस्य संवत्सरे ६८, वर्षामासे ४ दिवसे. ११ एतस्ये पूर्वाये आर्यं रोहनियतो * A Canningham C, S. 1. Arch. Report Vol. III page 33. Flate No. 10 Script. 14. (B. C. 10)
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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