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________________ ६५ इस से स्पष्ट है कि मथुरा से प्राप्त प्राचीन जैनमूर्तियों के लेखों में जो गण, कुल और शाखाओं के नाम दिये गये हैं, वे सब कल्पसूत्र के साथ मिलते हैं। चौथा लेख :_ (पंक्ति १) संवत्सरे ६० व........कोडुबिनी वेदानस्य बधुय । (पक्ति २) को (टितो) गणतो (प्रश्न) वाह (न) कती कुल तो, मज्झिमातो साखातो......सनीकाये।। (पंक्ति ३) भत्ति सालाए थंबानि...........* . - इस उपयुक्त लेख का सम्पूर्ण अर्थ करना संभव नहीं है क्योंकि लेख अनेक स्थानों से नष्ट हो गया हुआ हैं तथापि प्रथम पंक्ति के अधूरे लेख से ऐसा अनुमान करना ठीक प्रतीत होता है कि इस को अर्पण करने का काम किसी स्त्री ने किया है। दूसरी पंक्ति का अर्थ इस प्रकार है :-कौटिकगण, प्रश्नवाहनक कुल, मध्यमा शाखा से। - जब हम कल्पसूत्र के लेख को देखते हैं तो यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि ये 'कुल और शाखा भी कल्पसूत्र से मिलते हैं । ... "थेराणं सुट्टियसुप्पडिबुद्धाणं कोडिय काकंदगाणं इमे पंच थेरा अन्तेवासी अहवच्चाए अभिराणया होत्था, तंजहा-थेरे अज्ज इंददिरणे पियरगंथ थेरे विज्जाहर गोवाले कासवगुत्तणं, थेरे इसिदत्ते, थेरे अरिहदत्त थेरेहिंतो रंग पियरगंथेहिंतो इत्थण मज्झिमा साहा निग्गया। से किं तं कुलाई एवमाहिज्जंति, तंज हा पढमित्थ बंभलिज्जं बिहयं नामेण वत्थलिज्ज तु, तइयं पुण वाणिज्ज, चउत्थयं परहवाहणयं । * A Canningham Arch. Report Vol. III P. 35. Plate No. 15, Script No. 19..
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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