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________________ २५ शताब्दी में मगध का नन्द राजवंश जैन धर्मानुयायी था । तथा उस समय जैनधर्म ने वैशाली और मगध से सुदूर कलिंग पर्यंत विस्तार प्राप्त किया था । अतएव ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि उस समय बंगालदेश भी जैनधर्म के प्रभाव से बाहिर नहीं था । इस के बाद हम इस बात को भी सिद्ध करेंगे कि हमारा यह अनुमान निरर्धक नहीं है । इन के राज्यकाल नन्दवंश के पूर्व मगध का हयक राजवंश भी जैनधर्म का विशेष अनुरागी था । इसी वंश का सुविख्यात राजा बिम्बसार ( श्रेणिक) एवं तत्युत्र अजातशत्रु ( कूनिक ) जैनधर्म के अंतिम तीर्थंकर वैशाली के वर्धमान (महावीर ) के साथ वैवाहिक सूत्र में आवद्ध थे । (Camb Hist, P 157) बिम्बसार तथा अजातशत्रु ( ई० पू छठी शताब्दी) भारतवर्ष के इतिहास में विशेष विख्यात हैं। क्योंकि इन्हों के शासनकाल में मगध के वैशाली साम्राज्य की नीव पड़ी थी । एवं में बौद्ध, जैन तथा आजीवक ये तीनों ही प्रधान संप्रदाय भारत वर्ष में संघर्ष पूर्वक प्रचार पा रहे थे । क्योंकि बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतमबुद्ध ई० पू० छठी शताब्दी जैनधर्म के अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान-महावीर (जन्म ई०पू० ५६६ कैवल्य ५५७ निर्वाण-मृत्यु ५२७) एवं आजीवकधर्म के प्रवर्तक गोसाल मंखलीपुत्र ( कैवल्य ई० पू० ५५६) ने इन्हीं लोगों के शासनकाल में ही अपने अपने धर्मों का प्रचार * भगवान वर्धमान की माता त्रिशला तथा श्रोणिक की रानी चेलना आपस में सगी बहिनें थी एवं राजा चेटक की दोनों पुत्रियां थीं । (अनुवादक)
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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