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________________ किया था। विम्बसार एवं अजातशत्रु; बुद्ध तथा महावीर दोनों के प्रति श्रद्धावान थे तथा इन दोनों द्वारा प्रचारित धर्म के प्रति इनका अनुराग था। परन्तु अजातशत्रु संभवतः बाद में जैनधर्म के प्रति ही अति आकृष्ट हो गया था। (camb. Hist. p. p. 160-161 & 163)। अजातशत्रु का पुत्र उदय अथवा उदायी भी ई० पू० ४५६ से ४५३) संभतः जैनधर्मावलम्बी ही था (camb. Hist, P. 164)। अजातशत्रु एवं उदायी के समय से ही जैनधर्म बौद्धधर्म से प्रबलतर हो कर चन्द्रगुप्त मौर्य के समय तक प्रायः समग्र भारतवर्ष में जैनधर्म का प्रभाव हो अधिक था ऐसा ज्ञात होता है। तथा ऐसा मी अनुमानित होता है कि इसी समय ही जैनधर्म बंगालदेश में अपनी प्रधानता स्थापन करने में समर्थ हुआ था। आनन्द का विषय है कि इस अनुमान के अनुकूल यथेष्ठ प्रमाण भी उपलब्ध हैं। यहां इस विषय पर संक्षेप रूप से कुछ अलोचना करने की आवश्यक्ता प्रतीत होती है। बुद्ध देव ने स्वयं अथवा उनके शिष्य प्रशिष्यों ने बंगालदेश में कभी भी विशेषरूप धर्म प्रचार किया हो इस विषय का निःसंशय (शंका रहित) कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। वस्तुतः सब प्राचीन बौद्ध साहित्य में बंगालदेश के सम्बन्ध में किसी विषय पर भी कोई उल्लेख नहीं मिलता। बंगालदेश के लिये प्राचीन बौद्ध साहित्य की ऐसी नीरवता (चुप्पी) इतिहासज्ञों के निकट अवश्य विस्मय का कारण हो जाता है। बंगालदेश के सम्बन्ध में प्राचीन बौद्ध साहित्य में जो दो एक उल्लेख पाये जाते हैं उन की किंचित आलोचना
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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