________________ PROPOreot o sasaree श्री सिद्धचक्र भजो भाइ-आचामल तप नव दिनठाई, पाप तिहु योगे परीहरज्यो-भवी श्रीपालपरे तरज्यो, ____ओगणीसें सतरांसपे-जयपुर श्रीसुपास, चैत्रधवल पुनमदिने-मुज सफल हुई सब आस, बाल कहें नवपद छब प्यारी-जगतमें नवपद जयकारी. 5 (इति नवपद महात्मपर लावनी संपूर्ण.) CCC 2G aaeenecene [जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजीके बनाये हुवे __ ग्रंथोकी यादी.] १-मानवधर्मसंहिता. २-रिसाला मजहब ढुंढिये. ३-जैनसंस्काराविधि. ४-बयान पारसनाथ पहाड. ये चार ग्रंथ जितने छपे थे तमाम बीक गये, सीलक नहीं रहे. १-जैनतीर्थगाइड-किंमत तीन रूपये. २-त्रिस्तुति परामर्श-आठ आने. ३-सनम परस्तिये जैन-किंमत चार आने. ४-न्यायरत्नदर्पण-मुफत. [अलावा इसके और ग्रंथ छपवाना बाकी है, जनके नाम नीचे मुजब.] १-जैनतीर्थगाइड छोटी. २-पंचमकाल पताका. ३-खरतरगछ मीमांसा. ४-जहुरे आलम. ५-प्राचीन श्वेतांबर. ६-निर्णय प्रभाकर. कोई श्रावक इन ग्रंथोकों अपने नाम और अपने खर्चसे. छपवाना चाहे-ग्रंथकतासे बजरीये पत्रके दरयाफ्त करे. అe JoswwwcoG