________________
1
১৩৯৩১ ৩৩১৩১৩১৩৩৩
[सिद्धचक्र के महात्मपर उमदा लावनी.]
जगतमें नवपद जयकारी-पूजतां रोग टले भारी, प्रथमपद तीरथपति राजे-दोप अष्टादशको त्यागे, आठ प्रातिहारज छाजे-जग्तप्रभु गुण बारे राजे,
अष्ट कर्मदल जीतके-सकल रिद्धि थई आय, सिद्ध अनंत नमुं बीजेपद एक समय शिव जाय, प्रगट भयो निजस्वरूप भारी-जगतमें नवपद जयकारी. १ सुरिपदमें गोयम केशी-ओपमा चंद सूरज जैसी, ऊधार्यो राजा परदेशी-एक भवमांही शिव लेसी,
चोथेपद पाठक नमुं श्रुतधारी ऊबझाय, सर्वसाधु पंचमपदमांही-धन धन्नो अणगार, वखाण्यो वीरप्रभु भारी-जगतमें नवपद जयकारी.
द्रव्य खटकी सरधा आवे-समसंवेगादिक पावे, बिना ये ज्ञान नही किरिया-ज्ञानदर्शनथी सब तरिया, ज्ञानपदारथ सातमें-पदमें आतमराम,
रमता रहे अध्यातममांही-निजपद साधे काम, देखता वस्तु जगतसारी-पूजतां रोग टले भारी. योगनी महिमा बहु जानी-चक्रधर छोडी सब नारी, यति दशधर्म करी सोहे-मुनि श्रावक सब मन मोहे, कर्म निकाचित काटना-तपकुठार करधार, नवमापद जो करे क्षमासु-कर्म मूलकट जाय,
भजो नवपद जगसुखकारी-जगतमें नवपद जयकारी. ४
७७७०৩PU
३