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हिदायत बुतपरस्तिये जैन दिया न किसीसूत्रका हवाला दिया, सिर्फ ! थोडासा लिखाण लिखकर चैत्यशब्दके वारेमें कुछ पुछा है.
विवेचनपत्रकी शुरूआतमें मुनि कुंदनमलजी लिखते है किदेखिये ! पितांबरी मूर्तिपूजक शांतिविजयजीको हमारे स्वधर्मी सुश्रावक बंब खूबचंदजी साकीन उन्हेल-मुल्क मालवेवालेने जैनपत्र तारिख २९-५-११ के अंकद्वारा (२२) सवाल पूछे थे और उत्तर जैनसिद्धांतोंके मूलपाठसे मागेथे, ऊक्त प्रश्नोके जवाबमें शांतिविजयजीने सनम परस्तिये जैन-इस नामकी किताब छापके जाहीर किइ है.
(जवाब.) बेशक ! किताब सनम परस्तियेजैन मेरी तर्फसें बनाइ गइ है, जोकि जैनश्वेतांबरश्रावक धुलजी गणेश-साकीन महेंदपुर मुल्क मालवेने फायदेआमके छपवाकर जाहिर किइ है, इसमें मेने जो बाइससवालोके जवाब दिये है, कइजगह जैनसिद्धांतोके मूलपाठभी दिये है, जिनको शकहो मजकुर किताब मंगवाकर देखे, जैनसिद्धांतोके मूलपाठही मानना या बतीससूत्रही मानना जैसा किसी जैनसिद्धांतमें नहीं लिखा, अगर लिखा है तो कोई पाठ बतलावे, मेरेसे कोई महाशय जैनसिद्धांतोके मूलपाठ लेना चाहे, तो वे अपने लेखमे मूलसूत्रके पाठदेकर पेंश आवे, आप पाठ देना नही, और दुसरोसें पाठ मांगना, यह कौन इन्साफ है ? जैनसिद्धांतोमें सूत्र, भाष्य, टीका, नियुक्ति और चूर्णि ये पंचांगी मंजुर रखना फरमाया, मूलसूत्रोपर जो बालावबोध यानी टबा बना है, टीकाके आधारसे बना है, टीकाकों मंजुर नही रखना फिर टबाकों मंजुर क्यौं रखना? कइजगह मूलसूत्रमें जो बात बही है और टबेमे है, बतलाइये ! वे बाते कहांसे लाइ गई ? अगर कहा जाय टीकासे लाइ गई है, तो फिर टीकाकों मंजुर क्यों न किई जाय? नंदीसूत्रमे पेंतालीस जैनागमके नाम लिखे है, और एवमादि