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हिदायत बुतपरस्तिये जैन.
मजहबमें मूर्त्तिका मानना कदीमसे न होतातो ये पुरानी मूर्त्तियें क्यों होती ? और पुराने जैन तीर्थभी क्यों होते ?
बाद निर्वाण तीर्थंकर महावीरस्वामी के ( २९०) वर्क्स पीछे एक संप्रतिराजा जैममजहब में कामीलएतकात हुवा, जिसके तामीर करवाये हुवे जैनमंदिर हिंद में कइजगह अबतक मौजूद है, तीर्थशत्रुंजय, गिरनारपर इसीराजासंप्रतिके बनाये हुवे पुराने जैनमंदिर अबतक खडे है, आबुके जैनमंदिर मुल्कोमें मशहूर है, शेठ विमलशाह, दिवान वस्तुपाल, तेजपाल और शेठ भेसाशाहके बनवाये हुवे जैनमंदिर पहाडपर क्याही ! ऊमदा कारिगिरीके नमुने खडे है, जिसका बयान लिखना कलमसे बहार है, बडे बडे शिल्पकार इनमंदिरोकों देखकर ताज्जुब करते हैं, राजाकुमारपालका बनाया हुवा जैनमंदिर तीर्थतारंगापर किसकदर मजबूत और पावंद बना है जिसकी तारीफ वेंमीशाल है. जैनागमज्ञातासूत्रमें सतरहतरहकी पूजाका बयान है, खयाल करो कि अगर जैनमजहब में मूर्त्तिपूजा न होतीतो असा वयान क्यौं होता ? जैसे हफकों देखकर ज्ञान पैदा होता है, मूर्त्तिको देखकरभी ज्ञान होता है. जिसने पुस्तककी इज्जत कि उसने मूर्त्तिकी भी इज्जत किइ समजो, चाहे वो मूर्तिपूजासें अंतराज करे मगर उसके दिलसे मूर्त्तिकी इज्जत साबीत होचुकी.
इस किताब के बनानेका सबब यह हुवा कि जब मेने संवत् (१९७१) का चौमासा मुकाम शहरधुलिया, जिले खानदेशमें किया, मुकाम वरोरा, जिले चांदा से भेजा हुवा एक " मिथ्याभर्मनास्ति " नामका इस्तिहार बजरीये डाकके मुज़कों मिला, इसके लेखक मुनि कुंदनमलजी है और प्रसिद्धकर्त्ता जौनी गटुलाला कस्तुरचंदजी खानदेश है. इसमें मेरी बनाइ हुइ किताब सनम परस्तिये जैनपर कुछ विवेचन दिया है. इसमे न किसीसूत्रका पाठ