SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिदायत बुतपरस्तिये जैन बहुतसे कीडे-मकोडे फिर रहे थे, एकशख्श जीवोको बचानेके इरादेसे देखभालकर चलता था, दुसरा बिनादेखे ३रहेम होकर चलताथा. जीवोको बचानेका इरादा ऊसका नही था, योगानुयोग ऐसा बना कि देखकर चलनेवालेके पांवसे एककीडा दबकर मरगया, बिनादेखे चलनेवालेके पांवसे एकभी कीडा नही मरा, बतलाइये ! पापी कौन ? और पुन्यवान् कौन ? अगर कहा जाय देखकर चलनेवाला पुन्यवान् है, दशवैकालिकसूत्रमें पाठ है कि जयं चरे जयं चिठे-जयं आसे जयं सये, जयं भासंतो भुंजतो-पावकम्मं न बद्धइ. यतनासे देखभालकर चलनेवालेको भावहिंसा नहीं लगती, इसलिये पाप नही, जो शख्श विनादेखे बेरहेम होकर चलता था. चुनाचे ! ऊसके पांवसें कोईभी जीव नही मरा, तोभी उसका ईरादा जीव बचानेका नही था इसलिये उसको पाप है, ज्ञातासूत्रमें बयान है कि एक सुबुद्धिनामके दिवानने जित शत्रुराजाकों धर्मपावंद बनानेके लिये एक मोरीका पानी मंगवाकर ऊसकों कईदफे एक घडेसे दुसरे घडेमें डाला और साफ किया, खूशबूदार चीजोसे लज्जतदार बनाया, इसतरह करनेसे वायुकाय वगेरा जीवोंकी हिंसा हुई. बतलाइये! ऊसका पाप सुबुद्धिदिवानकों लगा या किसको ? अगर कहा जाय सुबुद्धिदिवानका ईरादा पापका नही था, धर्मका था, इसलिये पाप नही, तो इसीतरह दुसरे कार्यके लियेभी खयाल करलेना चाहिये. तीर्थकर मल्लिनाथजीने गृहस्थापनमें छह राजोको प्रतिबोध देनेके लिये. सुवर्णकी पुतली भीतरसे पोकल बनाइथी, और उसमें हमेशां भोजनका एकएक कवल डालतेथे, उसमें जो जीव पैदा हुवे और चवे बतलाइये ! ऊसका पाप किसकों लगा? अगर कहा जाय तीर्थकर मल्लिनाथजीका इरादा पापका नही था, छह राजोकों धर्मपावंद बनानेका
SR No.007284
Book TitleHidayat Butparastiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy