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________________ १४ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. जाते है, इसलिये भावहिंसा नही, और विना भावहिंसाके पाप नही, तो यही मिशाल दुसरे धर्मकार्य में क्यों नही लाना ? किसी श्रावकने दुसरे श्रावककों अपने घर बुलाकर उसके तपका पारना करवाया, रसोइ बनाई, रसोई बनानेमें पानी और अग्निके जीवोकी हिंसा हुई, बतलाइये ! ऊसका पाप किसको लगा ? अगर कहा जाय रसोइ बनानेमें जो पानी और अग्निके जीवोकी हिंसा हुई ऊतना पाप लगा, और तपस्वीकों जिमानेका पुन्य हुवा. जवाब में मालुम हो रसोई बनाने में ईरादा क्या पांच इंद्रियोकी पुष्टि के लिये था जो पाप लगे ? अगर कहा जाय ईरादा तो धर्मकी पुष्टिके लिये था तो फिर पाप कैसे लगा ? जैनमुनि एक गांवसे दुसरे गांव जावे और रास्तेमें नदी आजाय तो मुताबिक फरमान आचारांगसूत्रके एवं पायं जले किच्चा एवं पायं थले किया. इसतरह नदी ऊतरे और सामने किनारे जावे; खयाल करनेकी जगह है कि - नदीके पार जानेमें कितने अपकायके जीवोंकी हिंसा होगी ? तीर्थंकर गणधरोने नदी ऊतरनेका हुकम क्यौं दिया ? अगर कहा जाय जैनमुनि यतनासे नदी ऊतरते हैं, और बाद उसके नदी उतरनेका दंड लेते है, जवाबमें मालुम हो इरादे धर्मके जैनमुनियोंको नदी उतरने का हुकम है और हुकममें दंड नही होता, अगर कहा जाय यतनासें देखभालकर जैनमुनि नदी ऊतरते है, जवाब में मालुम हो त्रसजीवोको यानी हिलतेचलते जीवोकों यतनासें बचायगें मगर पानी के जीवोकों कैसे बचासकेगे ? ऊसकी हिंसा तो होगा या नही ? अगर कहा जाय मनःपरिणाम हिंसा करनेके नही इसलिये द्रव्यहिंसा हुई- भावहिंसा नही हुई, और विना भावहिंसा के पाप नही, तो फिर यही दलिल मंदिरमूर्त्तिके बारेमें क्यों नही लाते ? दो शख्श एकरास्तेसे जारहे थे और ऊसवख्त ऊस रास्ते में
SR No.007284
Book TitleHidayat Butparastiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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