SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६२ ) सहायता समय समय पर की है, और कई मरतबा पट्टे परवाने लिखा दिये हैं जिन का कुछ वर्णन हम यहां लिखते हैं। ( ३ ) महाराणा श्रीजगतसिंहजीने सम्वत् १८०२ वैशाख सुदी ६ बुधवार को लिखाया सो अबतक मौजूद है । (४) सम्वत् १८७४ जेठ सुदी १४ गुरुवार को एक परवाना महाराणाजी श्री भीमसिंहजीने लिखा दिया जिस से भी कुल अधिकार जैन श्वेताम्बर पंचो का पाया जाता है 1 (५) सम्वत् १८८२ फाल्गुन वदी ७ बुधवार को एक परवाना सलूम्बर के रावजी साहब श्री पदमसिंहजीने सिसोदिया खूमजी के नाम लिखा है । जिस को देखते भी यह पाया जाता है कि इस तीर्थ पर कदीम से जैन श्वेताम्बर पंचो अधिकार है । (६) सम्वत् १८८६ जेठ विद ५ रविवार को एक परवाना महाराजाधिराज श्री जवानसिंहजीने समस्त सेवक भण्डारीयों के नाम लिखा है उस में भी यह बयान है कि " नगरसेठ वेणीदासजी विगेरे जैन श्वेताम्बरी पंचो का कह्या माफक काम करज्यो । 35 (७) सम्वत् १८८९ जेठ विद १४ का लिखा हुवा परवाना उदयपुर दीवानसाहेब महेताजी श्री शेरसिंहजीने भण्डारी सेवकों के नाम लिखा जिस में भी उपर के परवाने मुवाफिक ही लिखा है ।
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy