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श्रावक लोगोंने यह तमाम सनदी कागजात पेश किये यह सच्चे हैं या झूठे, इस के लिये ठाकुर ने एहतराज किया हो एसा मेरे ख्याल में नही है । और यह सनदें देखते सच्ची हो एसा पाया जाता है । यह पुराने कागज पर लिखी हुई है और इन पर तरह तरह की मोहरें लगी है और एसी मोहेरें atract होना मुश्किल है । इस पर से यह लेख ( सनद ) असल है - सच्ची है एसा मैं मानता हूँ ।
इस के सिवाय इन सनदों के लिये जनाब पोलिटीकल एजन्ट साहब मी० पीलने ता ६ जनवरी सन् १८७६ को बम्बई सरकार के नाम कागज लिखा है उस के पांचवें पारे पर बयान किया है जिस का भावार्थ इस प्रकार है ।
" सिबूत (सनद) देखने से मालुम होता है कि दिल्ली के बादशाह के फरमान ( पट्टे ) से यह पवित्र पहाड श्रावकों के कब्जे में था । और इस की मालिकी बखशीस लेनेवाले की ही बिना किसी तरह की हरकत के पहले से ही रही हो । और एसे मालिकाना हक के लिये यह सनद मजबूत सिबूत हैं । "
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इन दोनों लेखों से भी बादशाह का दिया हुवा पट्टा प्रमाणित और असल मानना पडेगा, और पट्टे में तीर्थ केसरियाजी का नाम है सो पाठकों से छिपा नहीं है ।
मेवाडनाथने तो जैन समाज की व इस तीर्थ की बहुत