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चांदी का काम भी श्वेताम्बर समाज की ओर से हुवा है, और यह प्रमाण भी उन प्राचीन सिबूतो में दाखिल होने लायक है |
तीर्थ में भक्तिवश कोई वस्तु चढाई जावे या जीर्णोद्वार कराया जावे तो इतना करने से ही हक्क प्राप्त नहीं हो जाता है, लेकिन हक्क साबित करने के लिये तो प्राचीन प्रमाण बताने की आवश्यकता होती है जैसा कि इस पुस्तक में बता चुके हैं।
इस तीर्थ में नित्यप्रति गायन होता है । बिरुदावलीयें बोली जाती है और आरत्रिक उतारने के बाद नियमीत श्रीकेवरियानाथजी का स्तवन जितने मनुष्य हाजीर होते हैं सब एक साथ खडे खडे स्तुति के रूप में बोलते हैं ।
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रात्री में पुष्प की अंगरचना का दिखाव बडा ही सुन्दर और सुहावना मालूम होता है ।
और यहां भांति भांति की अंगिया धारण कराई जाती हैं जैसी जिस के जी में आवे निछराल याने लागत के रूपये दे कर करा सकता है । आांगिया कितने प्रकार की हैं सो यहां लिख देते हैं ।
१ सवातीन रुपये में
३ तेराह रुपये दो आने में
५ तेवीस रुपये दो आने में
२ छे रुपयों में
४ सोलह रुपयों में
६ सत्तावीस रुपये दस आने में