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प्रांगी का श्रृंगार करना संवत्
तरफ मौजूद हैं उन पर भी १८४२ में शुरु हुवा है। ”
इस लेख के बाद फिर आगे यह बयान किया गया है कि
" भंडार की तरफ से श्वेताम्बर रीति से पूजन व भारती यांगी आदि होती है और दिगंबरी पूजन भंडार से नही होती है - बडी मूर्ति के सिवाय अन्य जो मूर्त्तियां चारों तरफ मोजूद हैं उन पर भी ग्रांगी का श्रृंगार करना संवत् १८४२ से शुरु हुवा है। "
उक्त प्रमाण से यह भली प्रकार सिद्ध है कि मूर्ति की श्वेताम्बर विधि-विधान से पूजन-अर्चन होते लगभग ३०० तीनसौ वर्ष होने आये, और अन्य मूर्त्तियों पर आभूषणादि आरोप होते भी लगभग डेडसौ वर्ष होने आये । इस कथन को दिगम्बर समाज ही प्रतिपादन करती है तो इतने वर्ष का कब्जा व भुगतभोग दिगम्बर समाज की मान्यतानुसार हो जाने पर भी अब हक्कदारी के प्रश्न को स्थान किस तरह मिल सकता है ? सो न्यायद्रष्टिवान खुद ही सोच सकते हैं ।
और विचार करते हैं तो पाया जाता है कि श्रीकेसरिया - नाथजी महाराज की मूर्ति के पीछे चांदी की पिछवाई बना कर लगाई गई वह भी श्वेताम्बर समाज के श्रावक की ओर से है । देखिये उस पर का लेख ।