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श्रीयुत्
झाजी के कथनानुसार यही पूजन का विधान यहां प्रचलित है, जिस का संक्षेप वर्णन हम आगे लिख चुके हैं और यह श्वेताम्बर मतानुसार शास्त्रसिद्ध विधान है ।
इस तीर्थ की महिमा प्रभाव - और चमत्कार देख कर भक्तिवश प्रेमपूर्वक बडे हजूर महाराणाधिराज श्रीफतह सिंहजीने एक आंगी जो हीरजडित है जिस की कीमत लगभग २३५००० दो लाख पैंतीस हजार के करीब है । निज के निज खर्च द्रव्य व्यय से बनवा कर भेट स्वरूप रख धारण कराई है और यहां पर आभूषण धारण होने बाबत दिगम्बर बन्धुओं के यहां जो उल्लेख है सो भी हम यहां बताते हैं !
शेठ मानकचन्दजी पानाचंदजी की ओर से प्रकाशित " भारतवर्षीय दिगम्बर जैन डिरेक्टरी पृष्ठ ४७० व ४७१ पर इस तीर्थ केसरियाजी के बाबत बयान है कि
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मूर्त्ति का प्रातःकाल जल और दूध से अभिषेक कर के केसर चढाते हैं। दो पहर को एक बजे करीब फिर जल और दूध चढता है, पश्चात रत्नों की यांगी और मुगट पहिनाया जाता है, और पुष्पादिक चढाये जाते हैं । रात्रि को उतार कर सारे अंग में गुलाल चढाई जाती है । यहां के श्रावकों तथा भट्टारक क्षेपकीर्त्ति से मालूम हुवा है कि वि० सं० १७०२ में आंगी का आरोप ( पहिनावा ) शुरु हुवा है । बडी मूर्ति के सिवाय अन्य जो दिगंबरी मूर्तियां चारों
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