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प्राचीन विधान पूजा का चला आता है, उस को द्रष्टिगत रखते यह तीर्थ दिगम्बर सम्प्रदाय का मालूम नहीं होता ।
श्वेताम्बर मतानुसार पूजन प्रक्षालन आदि का विवरण इस प्रकार है कि प्रक्षालन से अव्वल जो कोई पूजा करना चाहे तो भ्रष्ट द्रव्य के अत्यन्त सुगन्धमय वासक्षेप से पूजा कर सकता है, और जल प्रक्षालन के बाद दुग्ध प्रक्षालन हो कर फिर जल से प्रक्षालन कराया जाता है । अङ्ग कपडे से साफ कर धूप-अगर खेवे जाते हैं, और बाद में अत्तर विलेपन होता है । फिर चन्दन मिश्रित बरास - कपूर या चन्दन मिश्रित केसर से पूजा की जाती है । और श्री केसरियानाथजी में तो चन्दन मिश्रित बनाने का समय भी नहीं मिलता क्यों कि बहुत से भाविक श्रावक तो अपने बच्चों को केसर से तोल कर सारी केसर एक साथ ही चढा देते हैं । केसर पूजा के बाद पुष्प धारण कराये जाते हैं, और फिर आभूषण - मुकुटकुण्डल का पहनावा कराया जाता है, और हजारों लाखों रुपयों की लागतवाली गीया धारण कराई जाती है । इस प्रकार करने बाद आरत्रिक उतारने का रिवाज है । यह सब विधान श्वेताम्बर समाज की मान्यतानुसार यहां पर होता आया है । एसी हालत में यह तीर्थ किस सम्प्रदाय का कहा जाय सो पाठक स्वयं सोच सकते हैं !
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यह प्रतिमाजी गांव बडौद में बिराजमान थे तब डूंगरपूर