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श्री केसरियानाथजी के प्रथम नाम निक्षेपे को देखते हैं तो यही तय होता है कि कैंसर बहुतायत से चढाई जाती है इस लिये यह नाम प्रसिद्धि में आया । इस विषय को स्पष्ट करने से पहले हम एक और बात बताना चाहते हैं, और वह यह है कि दिगम्बर सम्प्रदाय के महानुभाव जो इस तीर्थ को दिगम्बरी बतलाते हैं उन के यहां प्रतिमा पूजन का क्या विधान है सो देखना प्रसंगोचित है ।
मतवाले मूर्ति पर धारन कराना भी
दिगम्बर सम्प्रदाय में दो मत हैं । प्रथम बीसपन्थी, दूसरे तेराहपन्थी, इन में से बीस पंथी समाज के श्रावक तो मूर्ति को जल प्रक्षालन करा के पैर के दाहिने अंगूठे पर चन्दन चढाते हैं और अन्य द्रव्यादि सामने रखते हैं, और तेराह - पन्थी समाज के श्रावक जल प्रक्षालन करा लेते हैं और द्रव्यादि सामने चढाते हैं। दोनों आभूषण धारण नहीं कराते - मुकुट कुंडल मना है | इस प्रकार दिगम्बर समाज के श्रावक दोनो मतवाले अपनी अपनी मर्यादा विधान सहित पूजन-अर्चन करते हैं । लेकिन केसर की पूजा को माननेवाले नहीं हैं अर्थात् केसर नहीं चढाते बल्के जिस मूर्ति पर आभूषण केसर चढाई हुई होती है उस मूर्ति को वन्दन स्तवन भी नहीं करते और करने में दोष मानते हैं । इन के यहां धर्मशास्त्रों में केसर पूजा व आभूषण धारण कराने का उल्लेख नहीं है । इस से पाया जाता है कि तीर्थ केसरियाजी में जो प्रचलित