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in this way Saffron worth thousands of rupees is offered to the God annually.
(Indian Antiquary, VOL. I.)
उपर के लेख का भावार्थ यह है कि, मूख्य मूर्त्ति श्याम पाषाण की तीन फीट उंची आसन (बैठी) स्थिति में है। एसा कहते हैं कि तेरहवीं सदी के अन्त में गुजरात में से इस मूर्त्ति को ले गये थे । हिन्दु और जैन इन देव की पूजा करते हैं। जैनी लोग चौवीस तीर्थंकरों में से एक मान कर इन की पूजा करते हैं । मूर्त्ति के वर्ण उपर से भील लोक इन को कालाजी कहते हैं और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक भक्ति करते हैं। यात्री लोग मूर्त्ति पर केसर चन्दन आदि का लेप करते हैं जिस से यह दैव केसरियाजी के नाम से पहचाने जाते हैं। पहले के पूजारी (यात्री) ने केसर चन्दन का लेप किया हो उसे धो कर साफ करने का बाद में पूजा करनेवाले पूजारी (यात्री) को हक है । इसी कारण हजारों रुपयों का केसर चन्दनादि प्रति वर्ष मूर्त्ति (दैव ) पर चढाया जाता है ।
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उपर के दोनो लेखों से यह साबित होता है कि केसर बहुतायत से चढाई जाने के कारण यह तीर्थ व प्रतिमा श्रीकेसरियाजी कहे जाते हैं और लाखों रुपयों की लागतवाली आंगीया आभूषण चढाये जाते हैं, और हजारांह रुपये भेट होते हैं वगैराह ।