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दरबार की ओर से केसर - धूप-दीप के खर्चे के लिए एक गांव जागीर में निकाल दिया था, और शायद अब तक पूजारीयों के पास है । इसी तरह जब यह मूर्त्ति धूलेव में प्रगट हुई तो श्रीमान् महाराणाधिराज की ओर से धूलेव गांव जागीर में दिया गया जिस की आमदनी से खर्च अबतक निभता रहता है । और फौज पलटन वगैराह सब धूलेव भंडार की यहां रहती है जो समय समय पर सलामी वगैराह लेती है और पहरा देती है ।
इस तीर्थ में पूजन का विधान किस प्रकार है ? जिस का वर्णन करते हुवे श्रीमान् श्रोझाजी निज के बनाये हुवे " मेवाड राज्य का इतिहास प्रथम भाग पृष्ठ ४० पर लिखते हैं कि
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धूलेव नामक कस्बे में ऋषभदेव का प्रसिद्ध जैन मन्दिर है । यहां की मूर्ति पर केसर बहुत चढाई जाती है जिस से इन को केसरियाजी व केसरियानाथजी भी कहते हैं ।
और इसी पृष्ठ पर फुटनोट में बयान किया है कि
"यहां पूजन की मुख्य सामग्री केसर ही है और प्रत्येक यात्री अपनी इच्छानुसार केसर चढाता है । कोई कोई जैन तो अपने बच्चों आदि को केसर से तोल कर वह सारी केसर चढा देते हैं । प्रातःकाल के पूजन में जल - प्रक्षालन, दुग्ध प्रक्षालन, अतरलेपन यादि होने के पीछे केसर का चढना प्रारंभ होकर एक बजे तक चढता ही रहता है ।