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( ३६ ) "संवत १९१२ का मिति फागुन वदि ७ तिथौ गुरुवासरे श्रीधुलेवा नगरे श्रीक्षेमकीर्ति शख्योद्भव महोपाध्याय श्रीरामविजयजी गणी शिष्य महोपाध्याय शिवचंद्रगणि शिष्य.... चंद्रमुनिना शिष्य मोहनचन्द्र युतेन श्रीसत्गुरु चरणकमलानि कारितानि महोत्सवं कृत्वा प्रतिष्ठापितानि च वर्तमान श्रीबृह
खरतरगच्छ भट्टारकाज्ञाय श्रीअभयदेवसरि जिनदत्तमूरि जिनचन्द्रसूरि जिनकुशलमूरिणां चरणन्यासः___ यह प्रमाण जङ्गम वस्तु का है । प्रतिमा का प्रमाण अस्थिररूप में होता है, क्यों कि कहां पर अञ्जनशलाका, कहां प्रतिष्ठा और कहां प्रतिष्ठापिता इस का कोई नियम नहीं है । इस लिये अस्थिर वस्तु के लेख उपर से स्थावर वस्तु का मालीकाना हक साबित करने को न्यायदृष्टि से अनुकूल नही होता। अतः यहां जो प्रमाण दिये गये हैं वह बाग (वाडी) जो स्थिर रूप में है उस के दिये गये हैं। इस तीर्थ में जो श्वेताम्बरीय मूर्तियां सेठ दयालशाहने बनवाई वह और नगरसेठ बाफणा कुटम्ब वालोंने बनवाई वह बिराजमान है, तथापि इन के लेखादि को सिबूत में न लेकर श्रीविजयसागरजी महाराज की मूर्ति का लेख सिबूत में लिया गया जिस की यह वजह है कि श्वेताम्बराचार्य की मूर्ति एक स्थान से हटा कर अन्य स्थान में लेजा कर स्थापित नहीं कराई जाती । इस कारण गुरुमूर्तियां स्थिर और नियमित मानी गई है जो प्रमाण में दी जाना आवश्यक समज्ञ बयान किया गया है। इस के अतिरिक्त