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________________ ( ३५ ) योग से प्रगट हुई थी और उस जगह लोग-यात्रीगण जाकर केसर के छांटे दीया करते थे। वहांपर एक छोटीसी देवरीमन्दिरी बनवाई गई और सम्वत् १८६३ में श्रीमान् विजय. जिनेन्द्रसूरिजी महाराज जिन के उपदेश से यह छतरी बनवाई थी । आपहीने इस छतरी में चरण स्थापना-प्रतिष्ठा सम्वत् १८६३ जेष्ट सुदी चतुर्दशी गुरुवार को बडे ही समारोह के साथ कराई, जिस की प्रशस्ति इस प्रकार है और तत्स्थान में मौजूद है। . " स्वस्ति श्रीसंवत् १८६३ वर्षे शाके १६३६ वर्तमाने मासोत्तममासे शुभकारी ज्येष्ठ मासे शुभे शुक्लपक्षे चतुर्दशी तिथौ गुरुवासरे उपकेशज्ञातीयां वृद्धि शाखायां कोष्ठागार गोत्रे सुश्रावक पुण्यप्रभावक श्रीदेवगुरुभक्तिकारक श्रीजिनामा प्रतिपालक साह श्रीसंभुदास तत् पुत्र कुलोद्धारक कुलदीपक सीवलाल अंबाविदास तत्पुत्र दोलतराम ऋषभदास श्रीउदेपुर वास्तव्य श्रीतपागच्छे सकल भट्टारक शिरोमणि भट्टारक श्री श्री विजयजिनेंद्रसुरिभिः उपदेशात् पं० मोहनविजयेन श्री धुलेवा नगरे ॥ भंडारी दुलिचंद आगुं छई ।" उपर मुवाफिक चरण स्थापना के सिवाय श्वेताम्बराचार्य श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज जो दादासाहब के नाम से प्रसिद्ध हैं जिन के चरण-पादुका भी सम्वत् १९१२ फाल्गुन वदी ७ गुरुवार को स्थापित हुवे हैं, जिस का लेख तत् स्थान में मौजूद है जिस की नकल इस प्रकार है । देखिये ।
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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