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गवाही देता है कि मन्दिर पहले से ही श्वेताम्बरीय हो, और कारणवशात्-संयोगवश - उपद्रवादि के सबब प्रतिमाजी को जमीन में प्रवेश कर दीये हों, और वह समय आये जमीन से बाहर निकल आवे तो यह बात सम्भवित है । इस तरह से यह जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान की मूर्त्ति प्राचीन काल की वेब और श्वेताम्बराचार्यद्वारा प्रतिष्ठित यहां स्थापित है । इस तरह प्रतिमाओं का वर्णन पूरा हुवा अब पादुका का वर्णन करेंगे |
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