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समुद्र
के किनारे पर एक पहाड की बुलन्दी पर एक बहुत बडा मन्दिर लगभग एक क्रोड रुपये खर्च कर के बनवाया है, उस की प्रतिष्ठा भी सम्वत् १७३२ में श्रीविजयसागरजी महाराजने कराई है । और उस समय की अञ्जनशलाका में छाणी गांव वाले प्रतिमाजी भी हो तो संम्भावित है ।
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श्रीमान् विजयसागरसूरिजी की प्रतिमा के सिवाय इन्ही के चरण भी सम्वत् १७९६ के यहां स्थापित हैं, और आपने प्रतिष्ठा कराई जिस का लेख पब्भासन व प्रदक्षिणा में एक थम्बे पर मौजूद है |
इस वृतान्त पर से यही तय होता है कि सम्वत् १७३२ में दयालशाह के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराने बाद सम्वत् १७४६ में आपने श्रीकेशरियानाथजी तीर्थ में बावन जिनालय की प्रतिष्ठा कराई हो । और दस साल के बाद ही आप का आयुष्य पूर्ण हो गया हो, और एसे समय में भक्ति - वन्त श्रावकों या श्रीमान् दयालशाह जो आचार्य महाराज के भक्त थे इन्होंने यादगार में प्रतिमा और चरण की स्थापना कराई हो एसा पाया जाता है ।
इस तरह एक ही आचार्य की मूर्ति, चरण व अन्य शिलालेख - प्रतिष्ठ । लेख सम्पादन हैं तो यही सिद्ध होता है कि यह मन्दिर जैन श्वेताम्बर संप्रदाय का है ।