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पब्भासन पर सम्वत् १७३२ में प्रतिष्ठा कराई जिस का लेख्न है और वह इस प्रकार है
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ए०० श्रीगणेशाय नमः । स्वस्ति श्री (म) जिनेन्द्राय, सिद्धाय परमात्मने । धर्मात्वयकश्शाय " ऋषभाय नमो नमः । संवत् १७३२ वर्षे शाके १५८७ प्रवर्तमाने वैशाख शुक्ल पञ्चम्यां गुरौ पुष्य नक्षत्रे श्रीमेदपाटदेशे श्रीवृहत्तशके श्रीच (चित्रकोट पति सीसोदिया गोत्रे महाराणा श्रीजगतसिंहजी तद्वंशोद्धरणधीर महाराजाधिराज महाराणा श्रीराजसिंहजी विजयराज्ये श्रीवृहत् ओसवाल ज्ञातीय सीसोदीया गोत्रे सुरपुरीया वंशे संघवी श्री तेजाजी - चतुर्थ पुत्र सं. दयालदासजी तद्भार्या सूर्यदेपातमदे पुत्र सांवलदासजी तद्भार्या मृगादे समजु परिवार सहितौ श्रीऋषभदेव -श्रीविजयगच्छे श्री पूज्य कल्यासागर सूरीन्दाः तत्पट्टे श्रीपूज्य श्रीसुमतिसागर सूरिवर तत्पट्टे श्रीश्राचार्य श्रीविजय सागरसूरिभिः श्री ऋषभदेव बिंबं प्रतिष्ठितं ।
इस लेख का यह मतलब पाया जाता है कि मेवाडदेश की राजधानी का मुख्य नगर राजनगर जो महाप्रतापी वीर शिरोमणी महाराणा राजसिंहजी ( औरङ्गजेब से बाजी लेनेवाले ) की राजधानी का मुख्य स्थान था वहां पर इन छाणीवाले प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई है; और सम्भव है क्यों कि राजसमुद्र जिस को महाराणाधिराज राजसिंहजी ने बनवाया जिस की प्रतिष्ठा महाराणा साहबने सम्वत् १७३२ में कराई है । और महाराणा साहब के प्रधान मंत्री दयालशाहने राज