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( २६ ) उपर्युक्त ७६ मूर्तियों में से १४ पर लेख नही है। लेखवाली मूर्तियों में से ३८ दिगम्बर सम्प्रदाय की और ११ श्वेताम्बर की है ............लेखवाली मूर्तियां वि० सं० १६११ से १८६३ तक की हैं।
उपर के कथनानुसार सम्वत् १७५६ की बनी हुई श्रीमान् विजयसागरसूरिजी महाराज की मूर्ति व इन्ही आचार्य महाराज की प्रतिष्ठा कराई हुई सम्वत् १७४६ की प्रतिमा स्थापित है जिन को देखने से भलि प्रकार समझ में आजाता है कि श्वेताम्बरीय मन्दिर है तब ही श्वेताम्बर जैनाचार्य की मूर्ति यहां स्थापित की गई है। अगर अन्य सम्प्रदाय या धर्म का मन्दिर होता तो जैनाचार्य विजयसागरसूरिजी की मूर्ति कौन स्थापित करने देता?
श्रीमान विजयसागरजी महाराज विजयगच्छ के थे जिन की मूर्ति करीब डेढ फुट उंची विद्यमान है । भाप का अंतिम काल भी धुलेव नगर में ही हुवा हो, और आप के भक्तसेवकोंने यादगार के लिये यह स्थापना की हो ऐसा अनुमान होता है । सूरिजी महाराजने मेवाड देश में बहुत विहार किया हो एसा पाया जाता है क्यों कि सयाजी महाराज के बडौदे के पास “ छाणी " गांव हैं वहां के जैन श्वेताम्बर मन्दिर में श्रीआदिनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित है, उन के