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( २५ ) साहबने किया तदनुसार यहांपर मनो के तोल से केसर चढाई जाने से यहां का नाम श्रीकेसरियानाथजी प्रसिद्धि में आया। इस तरह का बयान श्री केसरियानाथजी की प्रतिमा का करने बाद बावन जिनालय की और द्रष्टि करते हैं।
देखते हैं तो पता चलता है कि इस समय बावन जिनालय में प्रतिमायें स्थापित हैं। उन में से बहुत प्राचीन काल के तो नजर नही आते, यहां तक कि पन्द्रहवीं सदी के प्रतिष्ठित भी मौजूद नहीं हैं । अलबत्ता बावन जिनालय के सामने खडे रहते दाहिने व बांये हाथ की तर्फ जो बडे मन्दिर हैं, उन में सम्वत् १७४६ में श्रीमान् विजयसागरजी महाराजने प्रतिष्ठा कराई वह प्रतिमा स्थापित हैं। श्रीकेसरियानाथजी की प्रतिमा के अतिरिक्त इस मन्दिर के खेला मण्डप में २२ और दैवकुलिकाओं में ५४ चौपन मूर्तियां बिगजमान हैं, जिन का उल्लेख श्रीमान्
ओझाजीने निज के बनाये हुवे मेवाड राज्य का इतिहास प्रथम भाग पृष्ठ ४३ पर लिखा है कि---
" इस मन्दिर के खेलामंडप में तीर्थंकरों की २२ और दैवकुलित्रों में ५४ मूर्तियां विराजमान हैं देवकुलिकाओं में विक्रम संवत् १७५६ की बनी हुई विजयसागर मूरि की मूर्ति भी है और पश्चिम की दैवकुलिकानों में से एक में अनुमान ६ फुट उंचा ठोस पत्थर का एक मन्दिर सा बना हुवा है जिस पर तीर्थकरों की बहुतसी छोटी छोटी मूर्तियां खुदी है। इस को लोग गिरनारजी का बिंब कहते हैं।