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________________ ( २४ ) पूजन श्वेताम्बर विधि अनुसार केशर पुष्प से होती है और कब्जा भी श्वेताम्बर समाज का है । इस विषय में महामहोपाध्याय रायबहादूर गौरीशङ्कर हीराचंदजी ओझाने मेवाड राज्य का इतिहास छपवाया जिस के प्रथम भाग पृष्ट ४२ पर बयान किया है कि__" यह प्रतिमा डूंगरपुर राज्य की प्राचीन राजधानी बडौदे ( वटपद्रक ) के जैन मन्दिर से लाकर यहां पधराई गई है । बडौदे का पुराना मन्दिर गिर गया है और उस के पत्थर वहां वटवृक्ष के नीचे एक चबुतरे पर चुने हुवे हैं । ऋषभदेव की प्रतिमा बडी भव्य और तेजस्वी है। उपर के कथन से ओझाजी साहब भी इस प्रतिमा का बडौद में स्थापित रहना मंजूर करते हैं, और निज के बनाये हुवे मेवाड इतिहास के प्रथम भाग पृष्ट ४० पर लिखते हैं कि___“ यहां पूजन की मुख्य सामग्री केसर ही है। और प्रत्येक यात्री अपनी इच्छानुसार केसर चढाता है। कोई कोई जैन तो अपने बच्चों आदि को केसर से तोल कर वह सारी केसर चढा देते हैं। प्रातःकाल के पूजन में जल-प्रक्षालन, दुग्ध-प्रक्षालन, अत्तर-लेपन आदि होने के पीछे केसर का चढाना प्रारंभ हो कर एक बजे तक चढता ही रहता है। धूलेव में प्रतिमाजी के पूजन की सामग्री का बयान ओझाजी
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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