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( २३ ) चलता है, और इस का संक्षेप वर्णन मालवा देशान्तरगत माडवगढ ( माँड् ) के पेथडशाह का चरित्र जिस को मुनि महाराज श्रीसुकृतसागरजीने प्रतिपादित किया है उस में पृष्ठ २२ पर लिखा है कि
" नागदे नागपुरे नासिक्य वटपदयो ।
सोपारके रत्नपुरे कोरटे करहेटके ॥ ४५ ॥ उक्त कथन करते चरित्र में बयान किया गया है कि मंत्रीश्वर पेथडशाहने चौरासी तीर्थों में मन्दिर बनवाये जिन तीयों में करेडा ( मेवाड ) का नाम लिखते " वटपदयो" बडौद का भी उल्लेख किया गया है । और होना ही चाहिये क्यों कि जिस जगह सर्वमान्य भव्याकृतिवाली-प्रभाविक-चमत्कारी-भगवान की मूर्ति स्थापित हो वह स्थान तीर्थ स्वरुप माना जाय जिस में कोई आश्चर्य नहीं है। और ऐसे प्रमाणों से भलीभांति सिद्ध हो जाता है कि जिस प्रतिमाजी के लिये फेबडशाइने बडौद का मन्दिर जो प्राचीन काल से तीर्थस्वरूप माना जाता था उसी मुवाफिक मान कर वहां मन्दिर बनवाया
और वही प्रतिमाजी धुलेव गांव में आये बाद भी तीर्थरूप मान्यता होना बडी बात नहीं है। यह श्वेताम्बरीय प्राचीनता का प्रमाण है।
इस के सिवाय यही प्रतिमाजी बडौद में जिस स्थान पर बिराजमान थे उस जगह पादुका स्थापित है, और उन की