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________________ ( १९ ) राम जोरावरमल्ल प्रतापसिंघ कुंवर सुलतानचंद भभुतसिंघ दानमल श्यामसिंघ हिमतसिंघ जेठमल चन्दणमल लघुपुत्र पुनमचंद गंभीरमल दीपचंद ईंद्रचंद सरुपचंद्रादि श्रीसपरिवारेण श्रीधुलेवनगरे श्रीरीषभदेवजी महाराज रे नगारखानो करायो घजादंड चढायो श्रीउदेपुर सुसंघ लायके महोत्सव करायो अट्ठाई महोत्सव करायो अट्ठाइ महोत्सव प्रतिष्ठितं बृहत्खरतर गणे वर्तमानं भट्ठारक श्रीजिनहर्षमुरिणां आदेषात् किर्तीरत्नसूरी साषायां । उं चारित्रोदय गणितात् शिष्य पं० ऋषभदास तत् शिष्य पं० कुशलचंद्रेण उपदेशात् कामदार जेष्ठमल्लजी तत्पुत्र ऋषभदास भद्रं भूयात् । श्री। भंडारी दलीचंदजी भंडारी आदमजी ॥ श्री ॥ श्री। ___इस तरह नौबतखाने का स्पष्ट शिलालेख देखने से और सम्वत् १६८५ से लगायत सम्वत् १८८९ तक के प्रमाण देखते हुवे इस मन्दिर का बनवाना व मालीकाना हक्क और कब्जा जैन श्वेताम्बर समाज का ही साबित होता है । और दिगम्बर भाई भी सम्वत् १७०२ से सोने व चांदी आदि की आंगी वगैरह का पहनावा जारी होना मानते हैं। अतएव सिद्ध होता है कि दिगम्बर भाइयों की मान्यतानुसार श्वेताम्बर विधिविधान से पूजन तो पहले से ही होती आई है, लेकिन आंगी का आरोप २८७ वर्ष से चला आता है । इस तरह मन्दिर के बनवाने का वृत्तान्त शिलालेखादि से जैसा समझ में आया बयान किया गया है, और यह मन्दिर हर सूरत में
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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