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________________ ( १८ ) 1 नाथ भगवान के मन्दिर के पास वाली दीवार से आगे जो किले की दीवार है वह कुछ उंची बनी हुई है । और अनुमान होता है कि किसी दिगम्बर भाविक श्रावक के पास श्रीकेशरियानाथजी के नाम का द्रव्य निकाला हुवा हो या चमत्कार-भक्तिवश कुछ द्रव्य इस तीर्थ में खर्च करने आये हों और तीर्थरक्षकोंने दीवार उंची बनवाने की इजाजत दी हो । तो इस का यह मतलब नहीं होता के किला ही दिगम्बर भाईने बनवाया है । और नौबतखाना सम्वत् १८८६ में कुंवर सुलतानचन्दजीने बनवाया जिस की प्रशस्ति भी नौबतखाने पर इस तरह की मौजूद है । नौबतखाने के लेख की नकल . ॐ श्री केसरियानाथजी रे नोबतखानारी प्रशस्त लिख्यते । शुभ संवत् १८८६ रा शाके १६५४ प्रवर्तमाने मासोत्तमे मासे मृगसिर मासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ रविवासरे श्री पडक देशे श्री धुलेवनगरे श्रीदेवाधीदेव श्रीरिखबदेवजी महाराज के नगारखानारी प्रतिष्ठा करि जिणरी प्रशस्ती श्रीमहाराजाधीराज महाराणाजी श्री श्री श्री श्री श्रीजवानसींघजी विजयराज्यै करापितं जेसलमेरु वास्तव्य ओसवाल ज्ञाती वृद्ध शाखायां बाफणा गोत्रे शु श्रावक पुन्य प्रभावक श्रीदेवगुरुभक्तिकारक श्रीजिनाज्ञा प्रतिपालक पंचपरमेष्ठी महामंत्र स्मरणात् सम्यक्त मूल स्थूल द्वादश वृतधारक सर्व सुभवोल लायक संघ नायक सेठजी श्रीगुमानचंदजी तत्पुत्र बहादरमलजी सवाइसंघ मगनी
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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