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१८८९ में नोबतखाना बनवाया तो छब्बीस साल के बाद ही ऐसा किस तरह हो सकता है कि ऐक सम्प्रदायवाला पूरा कोट - किल्ला बनावे और आगे का मुख्य द्वार याने नौबतखाना दूसरे सम्प्रदायवाले को बनवाने देवे । इस के सिवाय श्री चारभुजाजी महाराज का मन्दिर जो सम्वत् १७६४ में बना है उस को देखते हैं । और आगे चलकर श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी का मन्दिर जिस की प्रतिष्ठा सम्वत् १८०१ में हुई है उस को देखने बाद किल्ले की दीवार से मिलान करते हैं तो अच्छी तरह मालूम हो जाता है कि इन दोनों मन्दिरों की तामीर से पहले किल्ला बना हुवा है । इन दोनो मन्दिरों की तामीर याने दीवार दरवाजा व आंगन को देखने से कहना पडेगा कि किला बनवाये बाद यह दोनों मन्दिर बनवाये हैं । इस तरह के प्रत्यक्ष प्रमाण देखने बाद यह किला सम्वत् १८६३ में दिगम्बर भाईने बनवाया हो यह कथन सत्य प्रतीत नही होता। लेकिन ऐसा साबित करने के लिये जो शिलालेख सम्वत् १८६३ का कहा जाता है उस को द्रष्टिगत रखते हुवे कहना पडेगा कि शिलालेख का इतना साफ मतलब नही निकलता होगा कि दिगम्बर भाईने ही बनवाया हो । हमारी समझ में तो ऐसा आता है कि उस समय किल्ला कुछ उंचा कराया हो । और यदि उंचा कराया हो तो किल्ला पहले का बना हुवा साबित होता है । लेकिन सम्वत् १८६३ में कुछ उंचा कराया हो तो यह सम्भव है, क्यों कि श्री पार्श्व
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