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________________ ( १६ ) श्री संवत् १८०१ शाके १६६६ प्रमिति वैशाख सुदि ५ शुक्रवासरे श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ बिबं प्रतिष्ठिं बृहत्चपागच्छीय सुमतिचन्द्रगणिना कारापितं । श्रीरस्तु ।। शुभं भवतु ॥ उपर के लेख से विदित होता है कि श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठा सम्वत् १८०१ में श्री सुमतिचन्द्रजी गणीने कराई है । इस मन्दिर को देखे बाद मन्दिर के किल्ले की दीवार पर ध्यान पहुंच जाता है। जिस के लिये हमारे दिगम्बर भाइयों का कहना है कि यह किल्ला सम्वत् १८६३ में दिगम्बर श्रावकने बनवाया और इस विषय का शिलालेख भी कहते हैं। लेकिन किल्ला बनवाने का समय तो दूसरा प्रतीत होता है । क्यों कि इस किल्ले के बाबत गांव सलूम्बर कै रहनेवाले रोडजी गुरजीने सम्वत् १८६० महा सुदी १५ गुरुवार को श्री केशरियाजी की लावनी बनाई उस में बयान किया है कि | " देवल तो मजबूत बना है । उपर इंडा सोने का || 44 प्रोलुं दोलुंकोट बनाया । सब संगीनबंध चुने का ॥ १४ ॥ इस को पढने से पाया जाता है कि मन्दिर के चारों तर्फ किल्ला सम्वत् १८६० से पहले का बना हुवा था । लावनी बनानेवाले बतलाते हैं कि चारों तर्फ मजबूत कोट चुने का बना हुवा है और मजबूत कोट तीन साल बाद ही जीर्ण नही हो सकता । इस के सिवाय सेठ सुलतानचन्दजीने सम्वत्
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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