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________________ ( १३ ) लाभसूरिजी महाराज का १८२० में मौजूद होना पाया जाता है। इसी तरह लेख नम्बर ३ व ५ के देखने से श्री जिनभक्तिसूरिजी के प्रशिष्य अमृतधर्म वाचनाचार्य की कराई हुई प्रतिष्ठा का पता चलता है। और "रत्नसागर" नाम की पुस्तक में पृष्ठ १८० पर श्रीमान् जिनलाभसूरिजी के शिष्य समाकल्याणकजी महाराजने सम्वत् १८२७ में शीतलनाथ भगवान का स्तवन सुरत बंदर में प्रतिष्ठा के समय बनाया वह प्रकाशित हुवा है । इस के सिवाय भट्टारकजी श्री जिनलाभसूरिजीने सम्वत् १८३३ में " आत्मप्रबोध " नाम का ग्रन्थ संस्कृत में बनाया, और उस का भाषान्तर सम्वत् १६६७ में जबलपुरनिवासीने प्रकाशित कराया है । इस ग्रन्थ के पृष्ठ ३५६ पर लिखा है कि यह आत्मप्रबोध ग्रन्थ श्री जिनभक्तिसूरिजी के श्री जिनलाभसूरिजी हुवे उन्होंने सम्वत् १८३३ कार्तिक यदि पञ्चमी के दिन इस ग्रन्थ को सम्पूर्ण किया । इन तमाम हालत को देखते पाया जाता है कि नौ चौकीवाले लेख में श्री जिनलाभसूरिजी महाराज का नाम हैं वह उन्नीसवीं सदी में हुवे हैं और उन्ही के उपदेश से नौ चौकी मण्डप बना है जो श्वेताम्बर आचार्य थे उपर के कथन से भली भांति समझ में आ गया होगा कि मन्दिर के उपर का शिखर तो सम्वत् १६८५ में और बावन जिनालय के तीनों बडे मन्दिर आदि की प्रतिष्ठा सम्वत्
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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