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________________ ( १४ ) १७४६ में व नौ चौकी के मण्डप की तामीर सम्वत् १८४३ में होने के शिलालेख प्राप्त हैं । अब बाहर के भाग का विचार करना चाहिये । बाहर आकर देखते हैं तो श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बना हुवा है, जिस की प्रतिष्ठा श्रीमान् सुमतिचन्द्रजीने सम्वत् १८०१ में कराई है । जिस का शिलालेख तत्स्थान में मौजूद है, जिस की नकल देखिये | ॥ ॐ ॥ प्रणम्य परया भक्त्या पद्मावत्याः पदाम्बुजं । प्रशस्ति ल्लिख्यते पुण्या कविकेशर कीर्त्तिना ॥ १ ॥ श्री अश्वसेन कुल पुष्पक रथश्चभानुः । वामांग मानस विकासन राजहंसः || श्री पार्श्वनाथ पुरुषोत्तम एष भाति । धुलेव मंडनकरा करुणा समुद्रः || २ || श्रीमज्जगसिंह महीश राज्ये । प्राज्यो गुणैर्जात ईहालथोयं । पुष्पदत्त स्थिरतामुपैतु । सं पश्यतां सर्व सुखप्रदाता ॥ ३ ॥ दोहा | सुर मन्दिरकारक सुखद, सुमतिचंद्र महासाधः । तपे गच्छ में तप जप तणो, उपत उदधि अगाधः ॥ ४ ॥ पुन्य थाने श्री पार्श्वनो, हवी परगट कीध । खेमतो मनषा तिसु, लाहो भव नो लीध राजमान मुहता रतन, चातुर लक्ष्मीचंद । उच्छव किवा प्रति घणां, आणी मन आनन्द ॥ ५ ॥ ॥ ६ ॥
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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