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( ११ ) कतवाला माना जाता है, तथापि इस विषय में तो द्रष्टिदोष अवश्य है ।
पाठक ! इस स्थान पर जा कर देखें तो पता लगता है कि इन नौ चौकी पर बारह स्थम्भ तो खुले दिखते हैं, और चार स्थम्भ दीवार के सहारे के हैं । इन सोलह स्थम्भों के बीच में नौ चौकी का स्थान मौजूद है । जो जैन श्वेताम्बराचार्य के उपदेश से गोख के उपर की दीवार में लगे हुवे शिलालेख से साबित होता है।
नौ चौकी बाबत श्रीमान् ओझाजी साहबने ऐसा ही बयान तीन नौ चौकी जो राजसमुद्र की पाल उपर बनी हुई है, उन का विवरण लिखते " राजपूताने के इतिहास " में किया है जिस को हम द्रष्टिदोष मानते हैं। लेकिन श्वेताम्बर समाज के प्राचार्यमहाराज के उपदेश से नौ चौकी बनवाई गई जिस का उल्लेख राजपूताने के इतिहास में नहीं है । इस के लिये श्रीमान् ओझाजी साहब यह कह देंगे कि उस समय प्रशस्ति नहीं थी तो हम इस का स्पष्टीकरण करेंगे कि श्रीमान् बाबूसाहब पूर्णचन्द्रजी नाहर कलकत्तानिवासीने सम्वत् १९७१ में शिलालेख संग्रह कर पुस्तकरूप में सम्वत् १६७४ में प्रकाशित कराये हैं। और एक पुस्तक उसी अरसे में आप के पास भी पहुंचाई है उस में नम्बर ६३८ वाला लेख देख लिया होता तो आपने राजपूताने का इतिहास जो सम्वत्