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(१० ) चार्य श्रीमान् जिननाभसूरिजी के उपदेश से बनवाई है एसा शिलालेख से साबित होता है । यह लेख निज मन्दिर के दाहिनी तर्फ गोख के उपर अङ्कित है जिस की नकल इस प्रकार है।
" संवत १८४३ वै० शु० १५ पूर्णिमा तिथी रविवासरे बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभक्तिसरि पट्टालंकारे भट्टारक श्री१०५ श्रीजिनलाभसूरिभिः। - - श्रीरामविजयादी प्रमुख सहूकभादेशात् सनीपुर-श्रीऋषभदेवजी"
उपर के लेखवाली नौ चौकी के लिये इतिहासवेत्ता श्रीमान् गौरीशङ्करजी हीराचंदजी अोझाने निज के बनाये हुवे राजपू. ताने के इतिहास में पृष्ठ ३४५ पर बयान किया है कि
__ " यहां से तीन सीढियां चढने पर एक मंडप पाता हैं जिस को नव स्तंभ होने के कारण नौ चौकी कहते हैं, यहां से तीसरे द्वार में प्रवेश किया जाता है।
उपर की हकीकत लिखते हुवे श्रीमान् मोझाजी साहब विस्मरण हो गये हों एसा पाया जाता है, क्यों कि चौकी शब्द का अर्थ स्थम्भ नही बनता और यह शब्द सरल व परिचित है । तथापि चर्चात्मक स्थान में पहुंच कर निज के देखने बाद भी चौकी शब्द का अर्थ स्थन्म कैसे लिखा है समझ में नहीं आता । इन का कथन प्रमाणिक व सत्य हकी