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है क्यों कि अव्वल तो इस कथन की सत्यता का कोई प्रमाण सम्पादन नहीं है । दोयम अशुभसूचक चिन्ह देशीराज्य में रहनेवाला ही बनवावे। तो उस जमाने में कितनी भयंकर घटना थी जिस का अन्दाज देशीराज्य में रहनेवाली प्रजा से छिपा हुवा नहीं है । इस के सिवाय ऐसे ही चिन्ह राणकपूर, आबू आदि जैन तीर्थों में भी बने हुवे हैं । ___ उपर के कथन से इस मन्दिर का मध्य भाग शिखर आदि विक्रम सम्वत् १६८५ में और बाक्न जिनालय की प्रतिष्ठा सम्वत् १७४६ में होने के लेख मिलते हैं । इस लिये यह सिद्ध होता है कि यह मन्दिर सात सौ वर्ष पहले का बना हुवा तो नही है । इस के अलावा सम्वत् १७०२ में आंगी का आरोप जारी होना दिगम्बर भट्टारकजी महाराज क्षेमकीर्तिजीने फरमाया है, जिस का विवरण दिगम्बर भाइयों की छपवाई हुई डिरेक्टरी में है । तो सम्भव है कि मन्दिर का मध्यमभाग सम्वत् १६८५ में सम्पूर्ण होने के बाद याने पन्द्रह सोलह साल के बाद ही भट्टारकजी महाराज इस तर्फ पधारे हों और यह कथन प्रतिपादित किया हो। इस तरह मन्दिर बनवाने का समय और कौन सा हिस्सा पहले व पीछे बनवाया गया इस का विचार करने बाद आगे देखते हैं तो एक और विशेष प्रमाण मिलता है। और वह यह है कि मन्दिर के सामने जो नौ चौकी बनी हुई है । उस की प्रशस्ति का लेख जैन श्वेताम्बरीय मन्दिर होने का प्रमाण बतलाता है । यह नौ चौकी श्वेताम्बरा