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________________ इन बावन जिनालय में प्रतिमाजी स्थापित करने का समय सम्वत् १७४६ पाया जाता है, क्यों कि श्रीमान् विजयसागरजी महाराजने प्रतिष्ठा कराई है जिस के शिलालेख भी मौजूद हैं । इस लिये सिद्ध होता है कि बावन जिनालय की प्रतिष्ठा का समय सम्वत् १७४६ है । और इस को ध्यान में रखकर सोचते हैं तो इन के बनवाने का समय सम्वत् १७०० के लगभग का होना चाहिये । क्यों कि शीखर के हिस्से में सिलावटोंने खुद की मूर्ति चित्रकर उस के नीचे सम्वत् १६८५ लिखा है । तो सम्भव है कि शीखर का काम सम्पूर्ण होने बाद पन्द्रह साल के फासले पर ही बावन जिनालय की योजना हुई हो । इस के सिवाय एक और बात ध्यान में लेने योग्य है कि इन बावन जिनालय की कोठरियों में धर्मशाला होने के समय अन्दर आने का रास्ता वड के वृक्ष की तर्फ से हो ऐसा दिखता है, क्यों कि सामने खडे हो. कर देखें तो एक चबुतरे का निशान दिखता है। और उसी तर्फ जो दरवाजे का निशान है उस मार्ग से श्रीमान् हिन्दूकूलसूर्य महाराणा साहिब के पधारने का रिवाज था । जो अब तक चला आता है। पिछले रास्ते के लिये किसी का ऐसा मत है कि मन्दिर का खास दरवाजा जो कि पूर्व दिशा की तर्फ है, उस के उपर के भाग में एक मस्तक और पांच शरीर के चिन्ह है और वह अशुभ माना गया है । इस लिये श्रीमान् महाराणाधिराज इस मार्ग से नहीं पधारते थे । लेकिन यह कथन तो कल्पनामात्र
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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