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________________ बनवाये बाद मन्दिर के आसपास धर्मशाळा के मकानात बनवाये हों । क्यों कि हाल में बावन जिनालय हैं उन देवरियों को देखते पाया जाता है कि देवरी प्रकार से उन की तामीर नही कराई गई, क्यों कि उन के उपर उस समय का बनवाया हुवा गुम्मज मालूम नहीं होता, और बावन जिनालय की लाइन में सामान रखने के लिये और भण्डार के नाम से जो कोठरियां हाल में मौजूद हैं इसी मुवाफिक चारों तर्फ हो ऐसा अनुमान होता है । और इस समय भी भण्डार के नाम से पहिचानी जाती हैं। उन कोठरियों पर गुम्मज नहीं है और बावन जिनालयं पर भी शीखरनुमा या गुम्मज का कोई चिन्ह नजर नही आता । लेकिन गुम्मज की जगह गोलाकार टेकरी सी बनी हुई मौजूद है, जिन के उपर न तो कलश है न ध्वजादण्ड है । इस लिये पाया जाता है कि धर्मशाळा के लिये जो मकानात थे उन को समय आये इस कार्य में ले लिये होंगे । और इन बावन जिनालयों की लाइन में मन्दिर में खडे रहते दाहिने व बांये हाथ और मन्दिर के पीछे के भाग में जो बडे मन्दिर बने हुवे हैं उन को ठीक तरह देखने पर मालूम होता है कि इन के बनवाने का समय भी दूसरा है, क्यों कि छज्जा व चानणी जिसे आगासी भी कहते हैं। बावन जिनालय की लाइन में मिलते हुवे नही हैं । अलबत्ता पृष्ट भाग में जो मन्दिर बना हुवा है उस का आगे का भाग बावन जिनालय की लाइन में लिया गया है। इन सूरतों पर विचार करते पाया जाता है कि इन के बनवाने का समय दूसरा ही है ।
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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