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श्री आदिनाथ प्रणमामि नित्यं विक्रमादित्य संवत १५७२ वैशाख सुदि ५ वार सोमवार श्री जशकराज श्री कला भार्या सोवनबाई चीजीराज यहां धुलेवा ग्राम श्री ऋषभनाथ प्रणम्य कडी फोइ आ भार्या भरमी तस्या पवेई सा. भार्या हासलदे तस्य पगकारादेव रार गाय भ्रात वेणीदास भार्या लास्टी चाचा भार्या लीसा सकलनाथ नरपाल श्री काष्ठा संघ-श्री ऋषभनाथजी श्री नाभिराज कुष श्रीता-रीकुल
दोनों लेखों से पता चलता है कि इस मन्दिर का काम चौदहवीं सदी में बना है, और बाद में जिर्णोद्धार होता रहा हो इस के सिवाय इस मन्दिर का मध्यभाग विक्रम सम्वत् १६८५ में सम्पूर्ण होने का प्रमाण मिलता है । क्यों कि शीखर के
पर दो कारीगरोंने मन्दिर का काम सम्पूर्ण करते समय निज की मूर्तियां चित्रकर सूत्रधार की जगह खुद का नाम लिखा है, जिन में से एक का नाम "भगवान" दूसरे का नाम " लाधा" और नाम के नीचे सम्वत् १६८५ भादवा विद ५ मोमवार लिखा है । इस लिये इस लेख पर से यह सिद्ध होता है कि शीखर का काम सम्वत् १६८५ में सम्पूर्ण हुवा हो । शिलालेख से तो धी इम्पीरीयल गेझेटीयर में लिखे मुवाफिक चौदहवीं या पन्द्रहवीं सदी में बना हो या जारी किया हो और बह अनुकूलतापूर्वक सम्वत् १६८५ तक चलता रहा हो एसा अनुमान होता है।
मन्दिर की तामीर का ढंग देखते पाया जाता है कि मन्दिर