SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११० ) जैनमन्दिरों की पूजन - रक्षा के लिये जमीन कुबे आदि दे रखे हैं । और सालाना नकद रकम भी खर्चे के लिये मिलती है और कई मन्दिरो के लिये केसर, तेल व पूजारी को पगार देने का अमलदरामद अब तक बादस्तुर चला आता है । इन सब बातों को देखते पाठक सौच सकते हैं कि मेवाड राज्य का जैनियों के साथ कैसा चिरस्थाई सम्बन्ध है ? और हम यही प्रार्थना करते हैं कि यह सम्बन्ध दिन दूना रात चौगना बढता रहे | श्रीमान् महाराणाधीराज का प्रेम तो पूर्णरुप से है लेकिन अन्य कर्मचारी जो एतद्वेषीय हैं उन की भावना भी इस तीर्थ के लिये कम नहीं है, और बाहर के जो कर्मचारी यहां आते रहे हैं उन में से कितनेक महानुभाव तो इस तीर्थ को उच्च द्रष्टि से देखते थे । जिस का हम उदाहरण बताना चाहते हैं कि - धूलेव गांव के सूरजकुंड पर एक शिलालेख अंग्रेजी का लगा हुवा है उस को देखने से मालूम होता है कि एक अंग्रेज जो फौजी अफसर था उस की भावना मेवाडदेश में आये बाद इस तीर्थ के लिये कैसी थी ? जिस के शिलालेख की नकल को पढिये और समझ लिजीये कि यह इस भूमि के प्राकर्म का अद्भुत द्रष्टान्त है 1
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy