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________________ (१०७) को पधारते हैं। इस तरह जैनधर्म को समय समय पर उन्नत करने की भावना मेवाड राज्य में अधिकांश रही है, जिस का वर्णन करते बर्लिन (जर्मनी) के एक विद्वान् प्रोफेसर हेल्मुट ग्लाजेनाप खुद के बनाये हुवे Jainismus नाम के पुस्तक में बयान करते हैं कि भावार्थ- उदयपूर के सिसोदिया राजाओंने जैनियों पर जो कृपादृष्टि बतलाई है उस पर से राजपूताना के हिन्दुराजा इन के साथ कैसा सम्बन्ध रखते थे सो मालूम हो जाता है। बहुत प्राचीन काल से मेवाड के राणा जैनियों को आश्रय और अनेक हक्क देते आये हैं, और इस के बदले में जैनियोंने भी इस राज की नीमकहलाल नोकरी की है। प्रतापसिंहजी को सम्राट अकबर की सेनाने हरादिये थे, उस समय प्रतापसिंहजीने अपनी भगती हुई सेना को इतर ततिर कर दी थी। एसे समय में नई सेना खडी करने के लिये एक जैनीने अपना सारा धन महाराणां को सौंप दिया था । इस कारण से महाराणा प्रताप ( सिंहजी ) विग्रह जारी रखने के लिये और अन्त में विजय प्राप्त करने को शक्तिवान हुवे थे। उपकारवश हो कर इन राजाओंने जैनियों को भी बहुत से हक्क बखशीस किये हैं। १६९३ (सम्वत्) में महाराणा राजसिंहजीने सनद लिखदी जिस में जैनियों की जमीन उपर प्राणीहिंसा करने का निषेध किया, और इन के पवित्र स्थान में जो. प्राणी जाय उस को रक्षण देना, और जिन प्राणीयों को कसाईखाने ले
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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