________________
(१०६) धीराजने एक क्रोड रुपैया खर्च कर के राजनगर के समीप राजसमुद्र की पाल बनवाई, और दयालशाहने राजसमुद्र के किनारे पर ही एक उंची पहाडी की बुलन्दी पर मन्दिर बनवाया, जो तीन मंजील का तो इस समय है और आसमान से बातें करता हो एसा इस का अनुपम द्रश्य लगभग दस माइल दूर से दीखता है । इस के बनवाने में एक क्रोड रुपैया खर्च हुवा है, जिस की प्रतिष्ठा सम्वत् १७३० में आचार्य श्री विजयसागरजी महाराजने कराई, जिन की मूर्ति व चरण इस समय भी श्री केसरियानाथजी तीर्थ में स्थापित हैं। इसी तरह अपने बुजर्गों की चाल पर चलते हुवे महाराणाधिराज सरूपसिंहजी व सज्जनसिंहजीने भी जैन धर्म को खूब अपनाया,
और स्वर्गवासी महाराणाधिराज श्री फतेहसिंहजी की तारीफ तो हम कहां तक करें ? आप तो धर्ममूर्ति न्यायावतार थे, आपने जैनधर्म के साथ सम्पूर्ण तरह से तन-मन-धन से सहानुभूति प्रदान की है, और समय समय पर कई प्रकार की सहायतायें पहुंचाई हैं । हम आप के गुणों का वर्णन करने बैठे तो एक पुस्तक तैयार हो जाय | ___वर्तमान महाराणाधिराज सर भूपालसिंहजी बहादूर, जी. सी. एस. आई. के. सी. आई. ई. भी बडे कृपालु हैं। आप का स्वभाव दयामय है, और आप प्रजा को सुखी देखने के इच्छुक हैं। आपने तीर्थ केसरियाजी के बाबत कई मरतबा अच्छे अच्छे हुकम निकाले हैं। और खुद भी दर्शन करने