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C जैन समाज से निवेदन. 2
जैन साहित्य-संसार में एक ऐतिहासिक पुस्तक की वृद्धि हुई है. जिस का प्रकाशित करना विद्वान इतिहासवत्ताओं का काम था तथापि मेरे जैसा सामान्य व्यक्ति एसे कार्य को हाथ में लेकर पुस्तक प्रकाशन कराने का साहस करे तो जिस में कई प्रकार की त्रुटियां रहजाना सम्भव है; क्यों कि पुस्तक प्रकाशन का कार्य मामूली बात नहीं है। इसी कारण से इस पुस्तक में भाषासौंदर्य, लालित्य वाञ्चन और श्रृंखलाबद्ध लेख का तो अभाव ही है । लेकिन उद्देश मात्र इतना ही है कि श्रीकेसरियानाथजी महाराज के तीर्थ का वास्तविक वृत्तान्त जनता के जानने में आवे और जैन समाज नये झगडे-टंटो से बचे ।
हम इस इतिहास को प्रकाशित करा यह नहीं चाहते कि जैन श्वेताम्बर समाज के ही हक्क साबित होने के कारण पूजन-वन्दन के अधिकारी अन्य कोई नहीं हो सकते । न तो हम इस विचार के हैं
और न हमें इस तरह का पक्षपाद है । हम तो यही चाहते हैं कि जिनप्रतिमा जिनमन्दिर के नाम से झगडे किये जाय, लडाइयां लडी जाय यह सर्वथा आनिच्छनीय है । जैन समाज व्यापारी व बुद्धिशाळी नरवीर प्राकर्मी पुरुषों की खानदान से पेदायश है, और एसी चतुरकार्यकुशल समाज झगडे-टटो में अपना पुष्कल धन खर्च कर हंसी के पात्र बने इस को बुद्धिमान लोग वेदते नहीं हैं; किन्तु निन्दात्मक द्रष्टि से देखते हैं। खौर जिस का अंतिम परिणाम यही निकलता है कि दो के लडने से तीसरे को लाभ । जैन समाज की कमाई का गहरा धन तीर्थों की मुकद्दमेबाजी में चला गया और नतीजा कुछ भी नहीं ।