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का अनुमोदन महाराणाधिराजने सम्वत् १६३९ में किया और परवाना भेजा उस के कुछ साल बाद ही ध्वजादण्ड चढाने भामाशाह यहां आये हों तो यह मानने योग्य है । तीर्थप्रेम और भक्तिवश आये तो होंगे लेकिन ध्वजादण्डारोहण के बयान से यहां सम्बन्ध है । जिस के लिये वंशावली के सिवाय और कोई प्रमाण इस उल्लेख का हमारे देखने में नही आया । अतः जैसा देखा वैसा ही पाठकों के सामने रखते हैं। भामाशाह
आदि का बयान करते “ जीवन-विकास अने विश्वावलोकन" नाम के गुजराती पुस्तक में पृष्ठ ३०८ पर बयान है जिस का मतलब यह है कि
मेवाड राज्य में आशाशाह और भामाशाह की अङ्गत मदद को अलग रखते देखते हैं तो धार्मिक असर भी बहुत है । पर्युषण में अमारी पडह का बजना...................केसरियाजी तीर्थ के लिये असाधारण भक्ति................वगैरह जैनधर्म की पूर्ण असर के अवशेष हैं इत्यादि । जो कुछ प्राप्त हुवा पाठकों के सामने है, और विशेष परिवर्तन तो दूसरी भावृत्ति में नहीं है। आशा है जनता इस का ठीक सत्कार करेगी. इत्यलम् ।
१९९० अषाड सुदि १० । - पालीताणा (सौराष्ट्र) )
भवदीयचंदनमल नागोरी छोटीसादडी ( मेवाड)