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सम्वत् १६४३ महा सुदी १३ शाह भामाजी केन धुलेवरा श्री ऋषभदेवजी महाराज के मन्दिर को जिर्णोद्धार करापितं डंडप्रतिष्ठा कराई पछे यात्रा सम्वत् १६५२ रा वर्ष सुं लगाय सम्वत् १६५३ वर्ष सुदी माघ शुक्ला १५ तिथी शाह भामाजी सब देश री यात्रा कीधी याने लेण बांटी ६९००००० गुणसठ लाख खर्च कीधा पुन्य अर्थ मेदपाट, मारवाड, मालवो, मेवात, भागरा, अहमदाबाद, पाटण, खम्भाइत, गुजरात, काठियावाड, दिखण वगैरा सर्व देशे लेण बांटी मोर १ नाम............संग हस्ते दत्त्वा बामणाने जीव धर्म वराव्या जाचकांने प्रबल दान दीधां भोजक पोखरणा पोलवाल ने जगनहजीने मोहरां ५०० वटवो, मोत्यांरी माला १ घोड ५०० सर्व करी एक लक्ष मुका दान दे अजाचकता कुलगुरांने जाये परणे मोहर २ चवरी री लाग कर दीधी पोसालरा भट्टारषजी श्रीनरबद राजेन्द्रसूरिजीने सोनेरी सूत्र वेराव्या मोत्यांरी माला १ कडा जोडी १ डोरो १ गछ पेरामणी ई मुजब दीधी । वगैरा ।
उपर्युक्त लेख से पता चलता है कि भामाशाहने विक्रम सम्वत् १६४३ में नगर धुलेव के श्रीकेसरियानाथजी महाराज के मन्दिर पर ध्वजादंड चढाया जिस का प्रमाण वंशावली से मिलता है । वंशावली लिखनेवाले निज की बहीयों में उत्तम कार्यों का वर्णन लिखते हैं और यह पृथा अबतक प्रचलित है । भामाशाह वीरप्रतापी महाराणाधिराज प्रतापसिंहजी के समकालीन थे और बादशाह से पट्टा लिखाया जिस