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दूसरी आवृत्ति की प्रस्तावना.
श्रीकेसरियाजी तीर्थ का इतिहास जिस की प्रथमावृत्ति प्रकाशित होते ही लगभग तीन सौ पुस्तकें तो भेट भेजी गई,
और पांच सौ पुस्तकें प्राहकोंद्वारा बिक चुकी इस लिये करीब एक महिने बाद ही इस इतिहास की दूसरी श्रावृत्ति का प्रकाशन कराने की आवश्यकता पाई गई | यह पुस्तक किस्सा, कहानी व रसिक वार्ता वाश्चन को पोषण करनेवाली तो है नहीं । इस में तो केवल इस तीर्थ के प्राचीन-अर्वाचीन प्रमाणो का संग्रहमात्र है। न तो कोई कल्पनायुक्त उल्लेख है और न अतिशयोक्ति है । केवल वास्तविक प्रमाण जो सम्प्राप्त हुवे हैं उन्ही के आधार पर लिखा गया, है और इसी कारण जैन जनताने इस का ठीक सत्कार किया हो ऐसा अनुमान होता है ।
इस पुस्तक की प्रथमावृत्ति प्रकाशित होने बाद हमें भामाशाह की वंशावली का पता लगा जिस में तीर्थ केसरियाजी में ध्वजादण्ड चढाने व जिर्णोद्धार कराने का उल्लेख है । और सम्भव है क्यों कि भामाशाह की राजसेवा, संघसेवा, और ज्ञातिसेवा प्रशंसनीय थी। और ७४॥ शाह का वर्णन यह भी वंशावली लिखनेवालों के पास बहीयों में लिखा है, जिस की नकल हमारे पास है उस से भी पता चलता है कि भामाशाहने तीर्थयात्रा कर लेण दी और उन के जीवन में ध्वजादण्ड चढाने का भी बयान आता है । जिस की नकल हम यहां लिखते हैं।