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एक अच्छी बडी पुस्तक बन सकती हैं, लेकिन हमने उपयोगी परवानो में से कुछ नकलें पाठकों के सामने रक्खी है, जिन को देखने से मालूम हो जायगा कि मेवाड राज्य की कृपा जैनियों पर किस प्रकार रहती आई है । और परवानों के सिवाय हुक्म एहकाम तो कइ मरतबा एसे एसे जारी हुवे हैं जैसे आज होना असंभव है ।
आपत्तिकाल गुणानुवाद प्रकरण में भी जो सम्पादन हो सका उस का बयान किया गया है, और गुणानुवाद प्रकरण में हमने ज्यादे खोज नहीं की क्यों कि लावनीयां स्तवन, छन्द आदि इस तीर्थ के बहुत बने हुवे हैं और हम को हमारे संग्रह में से जो ठीक मालूम हुवा उन को गुणानुवाद में प्रकाशित किये हैं । और मेवाड राज्य और जैन समाज नाम का लेख जो अवश्य पढने लायक है । इस को पूरा लिखा जाय तो एक पुस्तक बन सकती है । अतः कुछ नमूने के तौर जो बयान पाठकों के सामने रखा है उसे अवलोकन करना चाहिये । इस तरह यह एक छोटी सी पुस्तक तैयार कर जनता के सामने रखी जाती है। जिस के प्रकाशन में किसी प्रकार की क्षति हो या प्रूफ संशोधन में द्रष्टिदोष के कारण अशुद्धियां रह गई हों उन के लिये पाठक क्षमा कर - सुधार कर पढ़ें और विशेष हम क्या कहें ?
सम्वत् १९६० ज्येष्ठ शुक्ला १
शनिवार.
सु. पालीताना (काठीयावाड).
समाजसेवक-चंदनमल नागोरी. छोटी सादडी (मेवाड ).